March 11, 2018

Don,t know what ?

क्या अजीब है , जिंदगी में ,
जब देखो ,
ला कर खड़ा कर देती है ,
दोराहे पर हमे !

हम जब भी दुखी होते हैं , चाहते हैं ढूँढना ,
ख़ुशी को हर चीज में ,

और पता है ,
तब क्या होता है ?
जब हम पाते हैं , अपने आप को ,
उस दोराहे पर , जहाँ  दोनों और सिर्फ ख़ुशी दिखती है !

एक थोड़ी पास , जो शायद थोड़ी कम है ,
एक थोड़ी दूर , जो शायद थोड़ी ज्यादा है !

चुनना सच में ,

बहुत कठिन है , उस दोराहे पर खड़े !

जब परेशनी होती है ,
तब ,
कभी लगता है, पास वाली ख़ुशी थोड़ी अच्छी है ,

कभी लगता है ,
दूर वाली ख़ुशी को अपनी बाँहों में भर लूँ !
ज्यादा तो है !


और सच बताऊँ ,
इस दूर पास ,
कम जयादा के चक्कर में ,
जो ख़ुशी सच में ,
हमारे पास होती है ,
उसे हम अपने आप से बहुत दूर कर लेते हैं !

सच में ,
क्या अजीब है , जिंदगी में ,
जब देखो ,
ला कर खड़ा कर देती है ,
दोराहे पर हमे !


अच्छाई और बुराई का ,
पता होता है हमे ,
क्या अच्छा है और क्या बुरा !
पर 
फिर भी ,
मानसिकता पनपती रहती है,
बुरा करने की हमेशा  !

बुरी चीज हमेशा आनंद देती है पर वो आनंद क्षणिक होता है !
और अच्छे कामो में आनन्द बहुत कम होता है !
और मिलता है शायद बहुत दिनों बाद ये आनंद ,
कारण शायद यही है , की लोग क्षणिक आनंद में ,
बहुत ख़ुशी महसूस करते हैं!!


हरीश 
10/04/2006 



ये क्षणिक आनन्द

ये कैसा एहसास है ,
जो मिटता ही नहीं ,
ये कैसी प्यास है ,
जो बुझती ही नहीं !

तमन्नाएं ये कैसी है ,
जो मचल जाती है पल भर में ,
भावनाएं ये कैसी  हैं ,
भड़क जाती हैं क्षण भर में !

ये क्षणिक आनन्द ,
न जाने क्यों ?

उठता है बार बार !!


हरीश
29 /09 /2006



शायद ये एहसास ,
ये प्यास ,
ये तमन्नाएं,
ये भावनाएं,
ये आनन्द ,
आधार हैं जीवन का !!

उदास जिंदगी

आज फिर जिंदगी ने ,
झकझोर दिया दिमाग को !

आज फिर दिखी एक उदास जिंदगी ,

जिंदगी जो कट गयी ,
अभावों के अँधेरे में !

जिंदगी जिसे न मिला सुकून ,
उम्र भर !

जिंदगी जो परेशान है ,
पहुँच के देहलीज पे मौत की !


शायद हर मोड़ पे तड़पाती है ये जिंदगी ,
शायद हर मोड़ पे रूलाती है ये जिंदगी !

न जाने क्यों उलझती है ये जिंदगी ,
और न जाने क्या क्या दिखाएगी ये जिंदगी !

आज फिर दिखी एक उदास जिंदगी ,
आज फिर दिखी एक उदास जिंदगी !


हरीश
27 /08/2006 

Dilli

दिल्ली ,
लोग कहते दिलवालों की दिल्ली ,

हमारे लिए तो ईंट , पत्थर वालों की दिल्ली ,
कहीं भी देखो तुड़ाई हो रही है ,
खुदाई हो रही है ,

बन रही हैं मंजिलें , बन रहे है पुल  ,
और हाँ ,
जहाँ देखो मेट्रो की जमाई हो रही है !

दिल्ली ,
लोग कहते दिलवालों की दिल्ली ,
हमारे लिए तो दिल्ली उनकी ,
जो खाकर पान, दिखते हैं अपनी हस्ती ,
पच्च से मारकर पिचकारी,
कहेंगे सॉरी  ,

दिल्ली
उन रिक्शा वालों की ,
जो  दस कदम के पच्चीस रूपए मांगते हैं ,
थक जाने का बहाना करके ,
दो बोतल अंदर डालते हैं !

आपस में लड़ते हैं ,
बीवी बच्चों को मारते हैं ,
रोज नए किस्से सुनाती ,
आशाओं और निराशाओं से भरी दिल्ली !

लेकिन लोग कहते हैं ,
दिलवालों की दिल्ली !!

हरीश
Sept  2006




Kahaani

मन की विचित्रता , धुंधुलापन ,
उम्र के बढ़ने के साथ  ,
सुलझाने की बजाये उलझता ही जा रहा है !

इच्छ्हायें ख़तम होने का नाम नहीं लेतीं ,
लम्बे जीवन की लम्बी अवधि के साथ ,
इच्छाएं , आकांक्षाएं , लम्बी होती जा रही हैं !

समय करवट बदलकर कुछ अच्छा करता है ,
और वही समय , उस अच्छे में ,
चार बुराई छुपा देता है ,
जो फिर जीवन को उलझा देती हैं !

इन सब चककरों  से बचने का उपाय ,
शायद मृत्यु हो ,
पर अगर मरना ही है ,
तो ,
इस जीवन में आए क्यों ?

अपने जीवन  लगभग आधे पड़ाव को पार करने के बाद ,
सब कुछ धुंधला है ,
जीवन के अंत तक ,
ये धुंधला ही रहेगा , शायद !

कुछ दो चार अच्छे या बुरे काम कर भी लेते हैं ,
तो भी जीवन का क्या महत्त्व ,
बातें , बातें , बातें ,
बातों की अदला बदली ,
बातों की हेरा फेरी ,
यही सब जीवन है शायद !


हरीश 
30 /5/2007 



वो मौसम , सर्द  हवाएं वो ,
और गर्मजोशी उसकी बाहों की ,
वाह 
क्या दिन थे ,
वक़्त रूकता नहीं था रोकने से भी !

टहलते - टहलते यूँ ही वक़्त गुजर जाता था ,

आज भी ,
छूकर  ये हवाएं , ठन्डे पानी को जब ,
सहलाती हैं बालों को मेरे ,
याद उसकी ताजा हो आती है ,
जहन में मेरे !
उसकी मखमली उंगलियां 
और 
मेरा रोम रोम !!



ये वक़्त बदलता है ,
बदलता है मौसम भी साथ साथ ,
रुत मदमस्त हो जाने पर ,
आती है उनकी याद दिन रात ,

करो बंद आँखें तो ,
दिखता है चेहरा मस्त मोहबत्त का ,
खुली हो आँखें गर ,
हर चेहरे में मोहबत्त दिखती है !

ये मौसम का असर है या 
बदल गया है दिल भी 
मौसम 
के साथ साथ !!




हरीश 
हर शय में , हर वक़्त ,
ढूंढ़ता था मैं जीवन ,

हर शय  ने हर वक़्त ,
मुझे उलझाए रखा !

तमन्ना ढूंढने की बह गई ,
आँसुंओं के सैलाब में ,
और 
उलझनों ने मुझे ,
यूँ ही दबाये रखा !



हरीश 
30/05/2007 
मिल जाए बस वो एक क्षण






तन का प्यासा ,
मन का प्यासा ,
मैं आवारा बंजारा !

जीवन के हर धन का प्यासा ,
मैं आवारा बंजारा !

प्यास मुझे हर एक उस क्षण की ,
जिसमे छुपा हो जीवन ,
प्यास मुझे हर एक उस पल की ,
जिसमे हो जीवन के कुछ क्षण ,

प्यास मुझे उस परम पिता की ,
जिसने रचा ये जीवन ,


प्यास बुझे इस तन, मन , धन की,
प्यास बुझे उस परम धरम की ,


प्यास बुझे मोहक जीवन की ,


मिल जाए बस वो एक क्षण ,
जिसमे छुपा हो जीवन !


हरीश !
30 05/2007 
आज दिखी एक ,
ढंगी बेढंगी जिंदगी ,

फुटपाथ पे गुजारी थी उसने ,
वो बेढंगी सी जिंदगी !
खुश लग रही थी मुख से ,
लेकिन उदास थी शरीर और मन से !

जीने की जददो जहद में ,
छोड़ दिया था जीना उसने !
क्या होती है ढंग की जिंदगी ?
हो सकते है
मायने जिंदगी के ,
कुछ न हो उसके लिए ,
पर मुझे बड़ी अजीब लगी ,
ये बेढंगी जिंदगी !

कट्टों  और तारपालों के ,
छोटे छोटे दो झोपड़ों में ,
रहती थी वो जिंदगी !

दिल्ली के फुटपाथ पे ,
पंचर लगाने वाले हरीश कुबड़े की ,
थी वो जिंदगी !

फिर दिखी आज,
एक बेढंगी जिंदगी !!


हरीश 
2/5/2007 

जीवन कितना है निष्ठुर , है मधुर भी कितना जीवन

जीवन कितना है निष्ठुर ,
है मधुर भी कितना जीवन ,









जीवन कितना है निष्ठुर ,
है मधुर भी कितना जीवन ,
क्षण में मिलाये ,
किसी प्रियतम से ,
फिर आस जगे कुछ जीने की ,
फिर प्यास जगे ,
उस से मिलने की ,
तन भटक जाए ,
मन भटक जाए ,
उसके सिवा  कुछ याद न आये ,
फिर आग लगे तन और मन में ,
भटके जीवन बस तड़पन में ,

जीवन कितना है निष्ठुर ,

है मधुर भी कितना जीवन !


हरीश 
6/8/2007